जीने दो
कोख में पलती हूँ तेरे...
हिस्सा हूँ मैं तेरा.....
प्यार करती हूँ तुझसे खुद से ज़्यादा....
धड़कता है मेरा भी दिल ....
हर रोज बढती हूँ थोड़ा-थोड़ा....
तेरी साँसों में है मेरी जान....
हँसती –रोती हूँ तेरे संग......
खुद को रंग लेती हूँ तेरे रंग में....मेरी बेरंग सी दुनिया को रंगीन बनाया तू ने....
हक है तेरा मुझ पर सबसे पहले.....खुदा का फरिश्ता हूँ मैं.....
पापा की राजकुमारी , तेरी लाडली हूँ मैं...
पर क्यों मारती है तू मुझे ये जानकर कि आखिर एक लडकी हूँ मैं...
कहती हूँ मैं भी तुझे माँ ....
लेकिन क्यों मुझसे प्यार नहीं है तुझे....?
तेरी ही परछाई हूँ मैं...पर फिर भी खुद से दूर क्यों कर देती है मुझे.....?
दुनिया की सबसे अच्छी बेटी बनकर दिखाऊँगी मैं...
लेकिन माँ ...मत मार मुझे....जीना चाहती हूँ मैं....तेरे ख्वाबों को पूरा करुँगी मैं...... .सपने जो तुने बुने है.....उन्हें सच करना चाहती हूँ मैं...... लेकिन ये सब सिर्फ तब होगा , जब तू मुझे इस दुनिया में कदम रखने देगी...
गला मत घोटना मेरा...बेटी हुई तो क्या ?
आखिर मैं भी इनसान हूँ माँ ...तेरा ही अंश हूँ .....
दूर मत करो मुझे माँ....जी नहीं पाऊँगी तेरे बिना.....
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